दोस्तों, लंबे समय बाद वापसी हुई है, आशा है आप सब सानंद होंगे। एक कविता आप सब के लिए..
मौन है अभिव्यक्ति मेरी,
मौन मेरी आस है,
मौन है सब चोट मेरी,
मौन मेरा विश्वास है,
नहीं है ये व्यथा मन की,
गर नहीं आवेश है..
भाव सकल शांत हैं..
उद्दिग्न किंतु परिवेश है..
क्यों कहूं कैसे कहूं..
जो शब्द मुखर-मौन है,
कौन फिर भी सुन रहा इन्हें,
वह कौन है.. वह कौन है?
जो है चराचर जगत की,
छाया का छिटका एक कण,
मेरे ह्रदय की ओस बन,
मेघों का संगी कौन है?
बरसे कहीं जो भूल से,
तो तृप्ति का तारण करे,
बन कर पराग पुष्प का,
भ्रमरों का जीवन कौन है?
हर मौन में भी मौन है,
वो आदि सा अनादि सा,
हर आत्म में परमात्म सादृश,
वो सखी- संगी कौन है?
मौन को भी शब्द दे,
जो खुद को करे अभिव्यक्त है,
वो अव्यक्त से व्यक्त फिर,
अव्यक्त होता कौन है?
आपका हमसफर,
दीपक नरेश