शनिवार, 20 अगस्त 2011

बप्पी दा..कहां हो?

पहली बार ऐसा हो रहा है.. किसी करिश्मे से ये कम नहीं.. समझ नहीं आ रहा कि हैरान होऊं या परेशान.. पूरा हिंदुस्तान अन्ना की हुंकार सुनकर आंदोलन में शामिल हो चुका है. .लेकिन अबतक अपने दादा कहीं नजर नहीं आए हैं.. ना रामलीला मैदान में और ना ही टीवी पर.. अरे भई.. मैं बात कर रहा हूं अपने बप्पी दा की.. हिंदुस्तान की तवारीख में ऐसा कौन सा जलसा.. आंदोलन या नुमाइश हुई होगी जिसमें दादा मय सेल्फ मेड गाना शिरकत ना किए हों.. कुछ नहीं होता था तो बप्पी दा.. अपनी स्वर्णाभूषित स्थूलकाय काया दिखाकर ही उत्साहित कर जाते थे..कि बच्चा जो चमका नहीं तो वो सोना ही क्या.. लेकिन आज उनके चाहने वाले वाकई उदास हैं.. दादा कहां हैं..दादा अबतक नजर क्यों नहीं आए.. पूरा हिंदुस्तान लोकपाल..लोकपाल की ललकार के साथ सड़क पर उतर आया है लेकिन बप्पी दा का कोई पता नहीं.. ताज्जुब ये हो रहा है कि आंदोलन जैसे..जैसे आगे बढ़ता जा रहा है.. बप्पी दा की कमी उतनी ही ज्यादा अखरने लगी है.. आखिर क्यों नहीं वो आगे आकर कोई ऐसा गाना गढ़ रहे.. जिसे सुनकर लोगों को लगता कि बस इसी की तो कमी थी.. आंदोलन में ....ये मिल गया.. समझो आंदोलन चमक गया ... इसलिए एक सजग संगीतप्रिय श्रोता होने के नाते मेरी बप्पी दा से गुजारिश है कि जहां कहीं हो...एक बार झलक दिखला दें और अपने चाहने वालों को एक बार फिर अन्ना के आंदोलन पर एक तड़कता..फड़कता गीत सुना दें..

आपका हमसफर

दीपक नरेश




गुरुवार, 18 अगस्त 2011

अब कामयाबी दूर नहीं..

अन्ना ने देश में एक ऐसी लहर पैदा कर दी है जिसने हर आदमी में ये भरोसा जग गया है कि हां भ्रष्टाचार को मिटाया जा सकता है.. हर हिंदुस्तानी वो चाहे दुनिया के किसी भी कोने में हो.. अन्ना की मुहिम में जुड़ने को बेचैन है। अफसोस.. सरकार इस बेचैनी को क्यों नहीं वक्त रहते महसूस कर पा रही है.. सच्चाई ये है कि सरकार को अपनी हार साफ दिख रही है.. अन्ना से भी और सियासी मोर्चे पर भी.. हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी पता नहीं क्यों जनता की नब्ज महसूस नहीं कर पा रहे.. क्या ये कांग्रेस के पतन के संकेत हैं.. आज से सात दशक पहले जब आजादी की ल़ड़ाई अपने अंजाम तक पहुंच रही थी.. महात्मा गांधी ने कहा था कि आजादी के बाद कांग्रेस को खत्म कर दिया जाना चाहिए.. कहीं अन्ना के अनशन से पैदा हुई अगस्त क्रांति कांग्रेस के पतन की इबारत तो नहीं लिखने जा रही..
मैं ये नहीं समझ पा रहा है कि इस आंदोलन में ऐसा क्या है जो कांग्रेस और उसके आलाकमान को नजर नहीं आ रहा..शायद आजादी के बाद ये पहला मौका है जब किसी मुद्दे को लेकर हिंदुस्तान की जनता इस कदर एकजुट नजर आ रही है और वो भी बेहद अनुशासित तरीके से.. लोग अन्ना के सत्याग्रह को अच्छी तरह समझ रहे हैं उनमें आक्रोश नहीं है.. उनमें सत्ता को उखाड़ फेंकने की बेचैनी नहीं हैं.. उनमें सियासतदानों को सबक सिखाने की भी कोई चाहत नहीं है.. वो आज को बदलने को उतने बेचैन नहीं है जितना इस बात को लेकर कि आने वाला कल बेहतर हो.. और इसके लिए वो किसी किस्म की हिंसा का भी सहारा नहीं लेना चाहते.. खुद अन्ना और उनकी टीम इस बात को साफ कर चुकी है कि वो आंदोलन को बेहद शांतिपूर्ण तरीके से चलाने के हिमायती हैं। लेकिन अफसोस की बात ये है कि सरकार कभी अफवाहों का सहारा लेकर तो कभी उलटे सीधे बयान देकर जनता को भरमाने की कोशिश कर रही है.. क्या ये ठीक है? लोग जानना चाहते हैं कि आखिर सरकार को ऐसी क्या परेशानी है जिसके चलते वो इस आंदोलन की हवा निकालने को तुली है.. क्या सरकार में बैठे नुमाइंदे डर गए हैं कि कहीं उनके चेहरे से नकाब ना उतर जाए.. कहीं लूट-खसोट की उनकी आजादी को ग्रहण ना लग जाए.. कहीं उनकी निरंकुश और भ्रष्ट सत्ता पर ईमानदारी का पहरा ना बैठा दिया जाए।

असल में यही होने जा रहा है आज नहीं तो कल.. क्या सरकार के नुमाइंदों को वो आवाज सुनाई नहीं दे रही जो कभी किसी गीतकार की .. कभी किसान की.. कभी वकील की.. कभी छात्र की.. कभी कामगार की.. कभी इंजीनियर की... कभी फिल्मकार की.. कभी कलाकार के जज्बातों का इजहार कर रही है.. सब बदलाव चाहते हैं और इस बदलाव को होने से रोका भी नहीं जा सकता है तो फिर आखिर मनमोहन सरकार किस चीज की इंतजारी कर रही है.. क्या वो चाहती है कि उसके चेहरे पर विलेन का लेबल चिपका कर ही उसे गद्दी से उतारा जाए.. जनता एकजुट है भ्रष्टाचार के खिलाफ.. बेईमान सरकार लामबंद हैं अन्ना के खिलाफ.. लेकिन जनता और सरकार के बीच ये जो अन्ना नाम का जीव अपनी बूढ़ी काया के साथ इतिहास को करवट लेने के लिए मजबूर कर रहा है उसकी ताकत का अंदाजा शायद सरकार नहीं लगा पा रही है.. आने वाले चंद दिन हिंदुस्तान की अवाम के लिए बेहद खास रहने वाले हैं.. चंद दिनों बाद उन्हें आजादी के बाद उगने वाला सूरज फिर से एक बार दिखाई देने वाला है.. उससे निकलने वाली उम्मीदों की किरनें हिंदुस्तान में ऐसा उजाला फैलाएंगीं कि सारी दुनिया उसकी चमक देखेगी.. वो देखेगी एक ऐसा आंदोलन के अंजाम को जिसको एक बेहद बूढ़े इंसान ने नौजवान पीढ़ी की ताकत से हकीकत में बदल दिया... वक्त आ गया है आइए हम एकजुट हों और जहां कहीं भी हैं वहीं से अन्ना की आवाज में आवाज मिलाकर कहे.. कि भ्रष्टाचार भारत छोड़ो...
जय हिंद, जय भारत
आपका हमसफर
दीपक नरेश