रविवार, 21 सितंबर 2008

इस्लामाबाद में आत्मघाती हमला


पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद के मैरियट होटल के बाहर हुए आत्मघाती हमले में 54 लोगों की मौत हुई। मरने वालों में चेक गणराज्य के राजदूत इवो जदरैक भी शामिल हैं। इसके अलावा कई विदेशी नागरिक भी इस हमले में मारे गए। इस हमले में घायलों की तादात भी सैकड़ों में है। दुनियाभर के देशों ने इस हमले की कड़ी निंदा की है और आतंकवाद के खात्मे के लिए एकजुट होकर लड़ने की अपील की है। पाकिस्तान सरकार का कहना है कि उसे हमले की पूर्व जानकारी थी और इस बात की आशंका के मद्देनजर सुरक्षा के सभी इंतजाम किए गए थे। लेकिन ब्लास्ट के बाद के हालात को देखने के बाद तो ये कतई नहीं कहा जा सकता कि सुरक्षा के माकूल इंतजाम का पाक सरकार का दावा सही है। ऐसे में सुरक्षा के लिहाज से बेहद संवेदनशील इस इलाके में विस्फोट की घटना कई बड़े सवाल खड़ी करती है..मसलन क्या ये पाकिस्तानी जमीन पर अमेरिकी कार्रवाई की प्रतिक्रिया है या फिर कुछ और.. लेकिन एक दिलचस्प जानकारी जो मैं आपसे बांटना चाहूंगा.. पाकिस्तान के एक मशहूर टीवी की एंकर ने खबर पढ़ते वक्त दिल्ली धमाकों का जिक्र कुछ यूं किया.. पाकिस्तान में अबतक का ये सबसे बड़ा आत्मघाती हमला है और जैसा कि हम जानते हैं कि हमारे पड़ोसी मुल्क हिंदोस्तान की राजधानी दिल्ली में अभी हाल ही में बम धमाके हुए हैं ऐसे में इस आतंकवादी हमले के बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता कि इसे किसने अंजाम दिया.. इस बीच हमारे एक पत्रकार दोस्त ने खबर दी कि उसने पाकिस्तान हाई कमीशन में एक परिचित को फोन कर जानकारी चाही कि आखिर ये ब्लास्ट हुआ कैसे और इसके पीछे कौन है लेकिन हमारे पत्रकार बंधु का फोन जैसे ही उन महाशय ने उठाया..बिना हेलो हाय किए सीधे इन्ही से पूछ लिया कि ....भाई आप लोगों ने ये क्या करा दिया....
दूसरा पहलू.-- अब तक की जानकारी के मुताबिक इस हमले के पीछे तहरीक-ए-तालिबान के मुखिया बैतुल्लाह महसूद का हाथ बताया जा रहा है। वजीरिस्तान के आसपास के कबाइली इलाकों में अमेरिकी हमले से खासा बिफरे इस कट्टरपंथी संगठन के निशाने पर पाकिस्तानी हुक्मरान पहले से ही रहे हैं। ऐसी खबरें है कि पिछले कई महीने से इन कबाइली इलाकों में कार्रवाई को अंजाम दे रहे पाकिस्तानी सैनिकों से ये बेहद बेरहमी से पेश आते हैं। इनके हाथों अब तक कई पाकिस्तानी सैनिक हलाक हो चुके हैं.. अमेरिकी से इनकी नाराजगी अब अपने मुल्क के हुक्मरानो के साथ-साथ अवाम से भी होती जा रही है खासकर उन लोगों से जो कट्टरपंथ के खिलाफ गठबंधन सेनाओं की कार्रवाई को जायज ठहरा रहे हैं। पाकिस्तान की सरकार भी कह रही है कि इन आतंकवादियों का किसी धर्म समुदाय से कोई लेना देना नहीं है और आतंकवाद को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाएगा।
और अब मतलब की बात... पाकिस्तान के हुक्मरान, वहां की फौज और आईएसआई सब इस बात से अच्छी तरह से वाकिफ है कि मैरियट पर आत्मघाती हमले के पीछे किसका हाथ है। लेकिन नजरिये में बदलाव लाए बिना क्या आतंकवाद का एकजुट होकर मुकाबला करना मुमकिन है समझने वाली बात ये है कि क्या उनका आतंकवाद हमारे मुल्क के आतंकवाद से अलग है क्या उनके यहां होने वाले आतंकवादी हमले हमारे यहां अवाम की रूह में दहशत बनकर घुसपैठ करने में जुटे आतंकी मंसूबों से अलग हैं। हमले कहीं भी हो मरने वाले हमेशा बेकसूर लोग होते हैं.. परिवार के परिवार तबाह हो रहे हैं और ऐसा किसी एक मुल्क में नहीं बल्कि उन देशो में भी हो रहा है जिनके सुरक्षा इंतजामात हमसे भी कहीं ज्यादा बेहतर हैं। ऐसे में मुसीबत के दौर में अगर तेरे-मेरे की मानसिकता देखने को मिले तो इसे क्या कहेंगे...चैनल की न्यूज रीडर हो या सरकारी नुमाइंदे.. हिंदोस्तान में हो या पाकिस्तान में ...सभी को ये समझने की जरूरत है कि ये लड़ाई मानवता के खिलाफ खड़े हो रहे एक ऐसे राक्षस से चल रही है जो वायरस बनकर दुनियाभर के अलग-अलग मुल्क में रहने वाले तमाम इंसानों के जेहन में पैबस्त होने की कोशिश में जुटा है और अपने मंसूबे को कामयाब बनाने के लिए हर किसी को अलग-अलग तरीके से बहला-फुसला रहा है।
आपका हमसफर
दीपक नरेश

3 टिप्‍पणियां:

रंजन (Ranjan) ने कहा…

आंतक तुम्हारे यहां भी
आंतक हमारे यहां भी

आओ सोचो..
साथ बैठो

कुछ पहल करो
ये न तुम्हारे हित में
ये न हमारे हित में

आओ सोचो..
क्यों मारते हो
मासुमों को..
ये नहीं मानवता के हित में

Udan Tashtari ने कहा…

कितने ही मासूम फिर मारे गये...

रंजन राजन ने कहा…

नई दिल्ली, फिर यमन की राजधानी साना और अब पाकिस्तान की राजधानी इसलामाबाद। आतंक के धमाके जहां कहीं भी हों, पीड़ा एक जैसी होती है और पीड़ित आम निर्दोष लोग ही होते हैं। इनकी जितनी भी निंदा की जाए, कम होगी।
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