गुरुवार, 2 अप्रैल 2009

ईश्वर के नाम एक कविता



दोस्तों, लंबे समय बाद वापसी हुई है, आशा है आप सब सानंद होंगे। एक कविता आप सब के लिए..

मौन है अभिव्यक्ति मेरी,
मौन मेरी आस है,
मौन है सब चोट मेरी,
मौन मेरा विश्वास है,

नहीं है ये व्यथा मन की,
गर नहीं आवेश है..
भाव सकल शांत हैं..
उद्दिग्न किंतु परिवेश है..

क्यों कहूं कैसे कहूं..
जो शब्द मुखर-मौन है,
कौन फिर भी सुन रहा इन्हें,
वह कौन है.. वह कौन है?

जो है चराचर जगत की,
छाया का छिटका एक कण,
मेरे ह्रदय की ओस बन,
मेघों का संगी कौन है?

बरसे कहीं जो भूल से,
तो तृप्ति का तारण करे,
बन कर पराग पुष्प का,
भ्रमरों का जीवन कौन है?

हर मौन में भी मौन है,
वो आदि सा अनादि सा,
हर आत्म में परमात्म सादृश,
वो सखी- संगी कौन है?

मौन को भी शब्द दे,
जो खुद को करे अभिव्यक्त है,
वो अव्यक्त से व्यक्त फिर,
अव्यक्त होता कौन है?


आपका हमसफर,
दीपक नरेश

8 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

मौन को भी शब्द दे,
जो खुद को करे अभिव्यक्त है,
वो अव्यक्त से व्यक्त फिर,
अव्यक्त होता कौन है?

-सुन्दर अभिव्यक्ति!! बधाई. वाकई लम्बा अन्तराल रहा.

Himanshu Pandey ने कहा…

क्यों कहूं कैसे कहूं..
जो शब्द मुखर-मौन है,
कौन फिर भी सुन रहा इन्हें,
वह कौन है.. वह कौन है?"

उस अव्यक्त सत्ता की ही चिरन्तन खोज में निशि वासर मानवता लगी रहती है ।
रचना प्रभावी है । धन्यवाद ।

mehek ने कहा…

जो है चराचर जगत की,
छाया का छिटका एक कण,
मेरे ह्रदय की ओस बन,
मेघों का संगी कौन है?
waah sunder shabdon ke saath sunder bhav,bahut khub

शारदा अरोरा ने कहा…

bahut sundar shabd diye hain aapne is man ke shor ko

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सुंदर अभिव्‍यक्ति हुई है ... बधाई।

Girijesh Mishra ने कहा…

मन की अभिव्यक्ति से पहले इतना लंबा मौन........ ये अच्छी बात नहीं है...राजा बनारस...।

abhivyakti ने कहा…

man bhawan kavita .....hardik badhai....bhawon ko yo hi abhivyakti dete raho
- jaya

abhivyakti ने कहा…

hridya sparshi kavita.....bahut dino baad .....par bahut sundar.
--jaya