रविवार, 12 अगस्त 2007

कवि अग्निशेखर के शब्द..

जब कविताएं वजह बनीं मेरे निष्कासन की,
मैंने और ज्यादा प्यार किया जोखिम से..
निराशा और अवसाद के लम्हों में,
मारी एक लंबी छलांग,
और जिया एक शायर होने की
कीमत अदा करते हुए...
मुझ तक आने के रास्ते में बिछे हैं
तूत के दहकते अंगार..
कौन आता नंगे पांव
मेरी वेदना के पास.....

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