शनिवार, 16 फ़रवरी 2008

एक कवि के शब्द

एक जहर है चंदन वन में,

एक जहर मेरे मन में,

मैं दोनों के बीच खड़ा हूं,

जीने की लाचारी में..

बहुत देखने की कोशिश की,

दिखी ना कोई सूरत पूरी,

मैंने तो बस वही जिया,

जो था मेरे लिए जरूरी,

कोई कुछ भी अर्थ लगाए,

मेरी समझ सिर्फ यह आए,

हर सूरज सूली चढ़ता है,

रोज किसी अंधियारे में,

पता नहीं हम कितना रोए,

हंसने की तैयारी में.....

3 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

very good poem what i liked..

बेनामी ने कहा…

बहुत ही अच्छी कविता है , मुझे ऐसी हि कविताएं पसंद है

बेनामी ने कहा…

its really the gr8 stuff from my big bro ...keep it up !!!


Sanjeev