मंगलवार, 19 फ़रवरी 2008

गिरिजेश भाई की 'बेतुक'बंदियां

1.
गुलों को रहता है इंतज़ार, मौसम-ए-बहार का
हम तो बेहया हैं, हर मौसम में खिलते हैं।।
2.
दर्द-ए-ग़म को बहुत पी चुका
अब इस ज़हर को पी लेने दो।
सिसक-सिसक कर बहुत जी चुका
अब सुकून से मर लेने दो।।
पीते दूध जला मुंह मेरा
छाछ फूंककर पी लेने दो।
खुली आंखों ठोकर ही खाई
ख्वाबों दो डग चल लेने दो।।
दर्द-ए-ग़म....
थोड़ा रूमानी हो जाएं...
जज़्बा-ए-इश्क़ का, जब भी उनसे इज़हार किया
जवाब में उन्होंने हरदम ही इनकार किया।।
ख़ता थी दिल की मेरे, क्यूं उनका ग़ुलाम हुआ
सज़ा में दिल का मेरे, रोज़ क़त्लेआम हुआ।
सज़ा कम करने का जब भी उनसे इसरार किया
जवाब में उन्होंने हरदम ही इनकार किया।।

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