मंगलवार, 19 फ़रवरी 2008

भाई गिरिजेश मिश्र की कलम से....

मेरे तन में सिहरन,
और मेरा मन उदास है
उस मेमने की तरह,
भेड़िया, जिसके आस-पास है...
बड़ा डरा हुआ, सहमा सा
उसने सुनी है किसी मां की चीख
और, देखी है
संगीनों के साए में घिरी ज़िदगी,
मांगती, कुछ सांसों की भीख
उसी पल से,
बड़ा उदास है....
समझाता हूं नादां को,
डाल ले इन सबकी आदत..
तभी कर पाएगा
खुद की हिफाज़त
मगर, ये मानता नहीं..
शायद जब तक
ये हालात से हारता नहीं
तब तक इसके मन में
थोड़ी सी आस है..

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