रविवार, 20 अप्रैल 2008

ये जो है जिंदगी

वक्त के समंदर में तकदीर की नाव,
कहीं पड़े भारी कहीं गलत लगा दांव,
हालात बेकाबू हुए तो खामोश रहे हम,
कारवां की धूल में भी खूब चले पांव,
जब मिली शाहकारी तो बेफिक्र हो गए,
अंदाजे जिंदगी में कई रंग घुल गए,
कौन जाने कब कहां मिल जाए ये खुदा,
हर पाप और पुन्य को सजदा किए गए,
वक्त जो कहता, मुमकिन ना हो तुम्हे मंजूर,
माकूल हालात ने भी फासले दिए,
तंग तकदीरों से भी दिल खोल के मिलो,
हर इम्तेहान जिंदगी में देते सबक नए,
जो मिल जाए हम यूं ही किसी राह मोड़ पर,
मुस्कराहटें और दो बाहों के दायरे,

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