रविवार, 20 अप्रैल 2008

जिंदगीनामा

कातिल ने बिठाए थे सुरागों पर कड़े पहरे,
साजिश में फंस गए थे बेगुनाह कई चेहरे,
हादसों में तब्दील हुई अपराध की तस्वीर,
सफेदपोश चालों में फंसी बेगुनाह की तकदीर,
नेता बने अपराधी या अपराधियों की सरकार,
राजनीति के दरबार में है पुलिस भी लाचार,
हुकुमत नहीं सोई कहे कागज के परिंदे,
शरीफों को हुई जेल हैं बेखौफ दरिदे,
किसी की बेटी लुटी है किसी का घरबार,
अपराध से फलफूल रहा खबरों का बाजार,
दिल और दिमाग दोनों पर भय का अजब ये जाल,
हर मोड़ पर मुमकिन है मिल जाए एक सवाल,
जो घर छोड़ के निकलो तो हथियार साथ लो,
नामालूम कब किधर हो जाए कोई बवाल,
जीना है जरूरी लेकिन रोटी बड़ी दिक्कत,
फल-फूल रहा हर कहीं नफरत का कारोबार,
अमनो सुकूं की बात की तो जान से गए,
गांधी को हमसे बिछड़े कई साल हो गए...

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