सोमवार, 21 अप्रैल 2008

कोउ 'नृप' होउ हमहि का हानी

भाई नीरज पांडे की कलम से....

नवाब अब रहे नहीं। नाममात्र के भी नहीं (नेपाल से राजशाही की विदाई हो रही है), लेकिन नवाबी जारी है। काम के नहीं तो नाम के सही। मिसाल के तौर पर हमारे मित्र दीपक 'नरेश' उर्फ़ 'राजा' बनारस। इनके स्वघोषित और आत्मविज्ञापित राजशाही पर सचमुच के राजा लोग चिढ़ गए। लाजिमी है, ऐसे राजाओं का न तो प्रचंड जैसे माओवादी कुछ बिगाड़ सकते हैं, न सरदार पटेल जैसी लौह क्षमता इनकी रियासत विलीन कर पाई (रियासत रहे तब तो, पहले ही कह दिया नाम के राजा हैं)। सो ‘forced (बलात) -retired’
(गणतंत्र दिवस की कमेंट्री की तरह हिंदी-अंग्रेजी दोनों जरूरी है) राजा लोग हताशा, निराशा और ईर्ष्या के वायरल से ग्रस्त होकर एक दिन दीपक ‘नरेश’ को घेर लिए। पकड़ के ले गए डॉमिनिक रिपब्लिक ऑफ कांगो। अफ्रीका के घने जंगलों में। ‘दीपक को काटो तो खून नहीं।‘ (मैं नहीं कह रहा...वर्षा वन में फैले मलेरिया के मच्छरों ने कहा, क्योंकि दीपक का खून डर के मारे सूख चुका था।) खैर वहां सच के राजाओं के मध्य दीपक ‘नरेश’ की पेशी हुई। सवाल- क्या नाम है? जवाब- दीपक ‘
नरेश’ उर्फ राजा ‘बनारस’। सवाल- तुम्हारे साथ कैसा सलूक किया जाए? जवाब-जैसा एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है। सवाल- अच्छा ठीक है, पहले हिंदुस्तान के तीन राजाओं के नाम बताओ। जवाब- राजा भैया...खामोश (दीपक को बीच में ही रोक दिया गया)...ये राजा भैया कहां का राजा है? जवाब- जी वो..जी सवाल- क्या जी..जी लगा रखी है...हमने सुना कि तुम्हारे यहां बड़ा शौक है लोगों को राजा कहलाने का...राजनीति में तो जहां-तहां के राजा हैं ही...फिल्मों में भी बादशाह और किंग हैं...और सुना कि एक शहर में अचानक 11 राजा पैदा हो गए हैं...(राजाओं का ताज़ा गुस्सा प्रीटी जिंटा के ‘किंग्स’ एलेवन से है )...? असली राजाओं से घिरे दीपक ‘
नरेश’ की सिट्टी-पिट्टी गुम है। इतने में कहीं से जंगल का राजा दहाड़ते हुए निकल आता है। दीपक भाई चौंक कर जाग जाते हैं...ऑफिस के लिए देर हो रही है...कान से फोन और सीने से बिटिया को चिपकाए अखबार की सुर्खियों पर नज़र डालते हैं- ‘कर्नाटक में बीजेपी और देवगौड़ा फिर हाथ मिलाने को तैयार’...’अब गरीबों को एक रुपये किलो मिलेगा चावल’...’विदर्भ में कर्ज से दबे एक और किसान की आत्महत्या’....गाड़ी में बैठे तो रेडियो पर गलती से पता नहीं कौन सा पुराना स्टेशन ट्यून हो गया। तुलसीदास की चौपाई चल रही है... कोउ ‘नृप’ होउ हमहि का हानी।

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