राहुल भाई की लेखनी से....
दोस्ती निभती नहीं
सच कहा दोस्ती निभती नहीं
निभे भी कैसे ?
तुम्हारे सतत् आघात मैं सह नहीं पाता
अपनी पीड़ा को हंसकर छुपा नहीं पाता
आत्मीयता के विस्तार में सीमा रेखाएं खीच नहीं पाता
दोस्ती के फासले जान नहीं पाता
अपनी परम अभिव्यक्ति रोक नहीं पाता
दोस्ती निभे भी कैसे ?
जब मेरी विनम्रता
तुम्हारे अहम् की पोषक बन जाए
तुम्हारी हँसी मेरे ह्र्दय पर कटाक्ष कर जाए
मेरा प्यार तुम्हारे गर्व का हास बन जाए
दोस्ती निभे भी कैसे ?
जब मैं झूठ तुमसे कह नहीं पाता
तुम्हारा पतन सह नहीं पाता
वह जाल जिसमें आदमी फंसते हैं
मैं बुन नहीं पाता...........
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