हमारे समय में
कुछ अनकही बातें..
दिमाग के किसी कोने में..
करवट लेती
उनकी आहट खामोश नहीं..
एक अनचीन्हें भय का साया
हमारे समय में..
क्या शब्द व्यक्त कर पाएंगे..
जब खामोश धरती के सीने पर
गरज उठा था..
समुद्र के आतंक का शोर..
प्रशांतता की मर्यादा रेखा के पार
मौत की लहरों में ..
तबाही का मंजर...
हमारे समय में..
एक खामोश सिसकी....
रिश्ते जिनको नाम नहीं दे सकते,
मानवता की दुहाई भर
हमारी आत्माओं को कचोटते कुछ प्रश्न
जिम्मेदार कौन? जिम्मेदार कौन ?
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