सोमवार, 21 अप्रैल 2008

कोलाज

ट्रेन की गति में एक लय है
रोटी की खुशबू है,
संघर्ष के पसीने की चमक
सूरज भी सलामी देता है..
बेतहाशा भाग रही रेलगाड़ियों को
पटरियों पर दौड़ रही चमकीली किरनें
ट्रेन के आगे-आगे..
.....
भीख मांगते बच्चे
सच का कोई कोना
जिजीविषा की रोशनी मे नहाया...
बूढ़ी औरत किसी कोने मे दुबकी
मरने के खौफ से
भीड़ से बचती..
कौन कहता है..
जीवन सुरक्षित है धऱती पर,
जबकि मौत भी आहट के बगैर
बेखौफ चल रही है साथ-साथ
गली-मोड़-नुक्कड़ से
घर की देहरी तक...
याद ना करो कि मुसलमान हो तुम
गर हिंदुओं के मोहल्ले से गुजरो..
मस्जिद के सामने भजन के शोर से
जाग सकते हैं दंगे....
क्योंकि जीवन नहीं है सुरक्षित धरती पर...

कोई टिप्पणी नहीं: