बुधवार, 7 मई 2008

जिंदा रहने की दिक्कत

दोस्तों, आज बात एक ऐसी बुराई की जिसका ताल्लुक तो समाज से है मगर इंसानी मगज में वो एक ना खत्म होने वाले वायरस की तरह पैबस्त है...आज मुझे एक ऐसे आदमी का फोन आया जिसका नाम बेकारू है..नाम से तो मैं उसे नहीं पहचान पाया लेकिन जब उसने मुझे बताया कि जिस इंटर कॉलेज में मैंने पढ़ाई की है वो वहां का चपरासी है तो एक दुबले-पतले टेढ़ी पीठ वाले बेचारगी से लबरेज इंसान की तस्वीर जेहन मे कौंध गई..उसको किसी ने बताया था कि मैं मीडिया में हूं तो उसने अपनी दिक्कतों में मेरी मदद की आस से फोन किया था.. अब मैं जो बता रहा हूं उसे गौर से पढ़िएगा। दरअसल बेकारू दलित है और पिछले कई बरस से एक जाति समुदाय के टीचर उससे नाराज रहते थे..समय के साथ जब उसने भी अपने हक जैसे एरियर, परीक्षा की ड्यूटी के दौरान मिलने वाले भत्ते के लिए आवाज उठानी शुरु की तो उसे तंग किये जाने का सिलसिला शुरु गया..इसी कड़ी में पिछले कुछ दिनों से उसे कॉलेज मे हाजिरी रजिस्टर पर दस्तखत नहीं करने दिया जा रहा था आखिर एक दिन जब तंग आकर उसने आरोपी टीचरों से थोड़ी तल्ख आवाज में बात की तो उनलोगों ने मिलकर उसे पीटना शुरु कर दिया किसी तरह उनकी चंगुल से निकलकर बेकारू जब थाने पहुंचा तो थाने मे भी उसकी गुहार नहीं सुनी गई औऱ उसे डांट डपट कर भगा दिया गया.. आज हालत ये है कि इस घटना को बीस दिन से ज्यादा बीत चुके हैं और बेकारू मुख्यमंत्री, राज्यपाल औऱ मानवाधिकार आयोग को भी अर्जी भेज चुका है लेकिन ना तो अब तक उसकी एफआईआर दर्ज की गई है औऱ ना आरोपी टीचरों पर कोई कार्रवाई की गई है...इतना ही नहीं अब भी कॉलेज में उसके साथ होने वाली बदसलूकी चालू है....जब कुछ स्थानीय पत्रकारों और स्वंयसेवी संगठनों ने बेकारू की एफआईआर दर्ज करने की पैरवी की तो उसे भी नजरअंदाज कर दिया गया। हैरत की बात ये है कि इस वक्त उत्तर प्रदेश मे मायावती की सरकार है जो हमेशा दलितों के हितों का ढिंढोरा पीटती रहती हैं...लेकिन अगर बेकारू जैसे लोगों को इंसाफ दिलाने की बात आती है तो उनका प्रशासन तंत्र नाकारा साबित हो रहा है....आपको बताऊं तो उसके साथ बदसलूकी करने वालों में एक शख्स ऐसा भी है जिसने मुझे पढ़ाया है लेकिन अब पीछे मुड़कर देखता हूं कि बच्चों की तकदीर संवारने का जिम्मा उठाने वाले वो सम्मानित टीचर खुद इंसानियत औऱ भलमनसाहत की तमीज नहीं सीख पाए..खैर इंसाफ की इस लड़ाई में बेकारू के साथ काफी लोग हैं और उसको इंसाफ दिलाने के लिए आवाज भी उठ रही है.. मुमकिन है कल उसकी एफआईआर लिख ली जाए और उस एफआईआर पर कार्रवाई भी हो जाए.. मगर उस बीमारी का क्या होगा जिसका जिक्र मैंने शुरु में किया.. अगर तहजीब का ककहरा सिखाने वाले लोगों की मानसिकता ये है तो इस समाज का भगवान ही भला करे.......
आपका हमसफर
दीपक नरेश

3 टिप्‍पणियां:

विजयशंकर चतुर्वेदी ने कहा…

भाई साहब, आप उस दलित के समर्थन में मोर्चा क्यों नहीं खोल देते? बगैर पढ़े-लिखे महापुरुष आपके समर्थन में बाहें फैलाये खड़े हैं.

विजयशंकर चतुर्वेदी ने कहा…

y
aapko tahzeeb kaa kakakahraaa ab yoopee men seekhane ko miegaa. chintit kyon hote hao? sattaa ke liye vahaan bhee brahmanon ne chaal chal dee hai beta.

Udan Tashtari ने कहा…

भगवान ने सबका भला किया है तो यहाँ क्यूँ नहीं.

---अब सुनिये.......................


आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है.

एक नया हिन्दी चिट्ठा भी शुरु करवायें तो मुझ पर और अनेकों पर आपका अहसान कहलायेगा.

इन्तजार करता हूँ कि कौन सा शुरु करवाया. उसे एग्रीगेटर पर लाना मेरी जिम्मेदारी मान लें यदि वह सामाजिक एवं एग्रीगेटर के मापदण्ड पर खरा उतरता है.

यह वाली टिप्पणी भी एक अभियान है. इस टिप्पणी को आगे बढ़ा कर इस अभियान में शामिल हों. शुभकामनाऐं.