शुक्रवार, 23 मई 2008

उसूलों पर टिकने की कीमत


यूपी के मुख्य सचिव प्रशांत कुमार मिश्रा ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है और स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का फैसला किया है.. वैसे तो ये मामूली खबर है और किसी अखबार में एक कॉलम की जगह पाने लायक ना नजर आए लेकिन उनके इस फैसले की वजहें बेहद गंभीर हैं जो राजनीति और प्रशासन के उस गठजोड़ से ताल्लुक रखती हैं जो समूचे सिस्टम को सड़ाने पर तुला है। एक गैरसरकारी संगठन को लखनऊ में 70 एकड़ जमीन देने के मायावती सरकार के फैसले के खिलाफ इस अफसर ने आवाज उठाई..उन प्रशासनिक अफसरों को भी ललकारा जो राजनेताओं की चापलूसी करके अपनी दुकानदारी चमकाने पर लगे रहते हैं..शुक्रवार को मंत्रिमंडल की बैठक में इस बहादुर अफसर ने मुख्यमंत्री के मुंह पर कह डाला कि वर्तमान व्यवस्था में कई काम नियमों का उल्लंघन करके हो रहे हैं और इनके बारे में मंत्रिमंडल को अवगत कराया जाना चाहिए। जाहिर है जब फायदा मुख्यमंत्री के चहेतों को ही मिलने वाला हो तो ऐसी बात सुनकर उनका भड़कना लाजिमी है। लेकिन प्रशांत मिश्र ने अपनी टिप्पणी वापस लेने के मुख्यमंत्री के निर्देश को मानने के बजाय नौकरी छोड़ना बेहतर समझा..भारतीय प्रशासनिक सेवा यानी आईएएस के 1972 बैच के वरिष्ठ अधिकारी प्रशांत मिश्र एक ईमानदार और उसूलों पर टिके रहने वाले अधिकारी के तौर पर जाने जाते हैं औऱ उनके करीबी भी उनकी मिसाल देते हैं.. लेकिन लगता है मायावती जी को अब ईमानदार अफसरों की जरूरत नहीं रह गई।..तभी तो जिन गरीब और मजलूम लोगों की आवाज बनकर उन्होंने यूपी का सिंहासन हासिल किया था उनके लिए काम करने में सक्षम अफसरों का ये हाल किया जा रहा है। ..चापलूसों से घिरी मायावती को ये समझना चाहिए कि वो अंतिम सत्ता नहीं हैं अगर यही हाल रहा तो जिस जनता ने उन्हें ये गद्दी नवाजी है वही जनता उन्हें इस गद्दी से उतारने में देर नहीं लगाएगी..आपको याद होगा चंद रोज पहले मैंने आपको बेकारू नाम के एक आदमी का किस्सा सुनाया था..और आपको जानकर ताज्जुब होगा कि सूबे का मुख्यमंत्री दलित होने के बावजूद बेकारू की एफआईआर आजतक नहीं लिखी गई....
आपका हमसफर
दीपक नरेश

2 टिप्‍पणियां:

हरिमोहन सिंह ने कहा…

सच बताने के लिये धन्‍यवाद

DEEPAK NARESH ने कहा…

धन्यवाद हरिमोहन जी..हमारी कोशिश को सराहने के लिए..