गुरुवार, 8 मई 2008

मेरी पसंद


नफरत ही वो करता जो ना करता वो मोहब्बत,
वो शख्स किसी बात पे तैयार तो होता,
पढ़कर जिसे बेखौफ मैं एक बार तो होता,
ऐसा भी किसी रोज का अखबार तो होता ।
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मैदां में हार जीत तो किस्मत की बात ,है
टूटी है किसके हाथ में तलवार देखना,
हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी,
जिसको भी देखना हो कई बार देखना ।
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वक्त ने मेरे बालों में चांदी भर दी,
इधर-उधर आने-जाने की आदत कम कर दी,
आइना ठीक ही कहता है ,
एक जैसा चेहरा-मोहरा किसका रहता है,
इसी बदलते वक्त सहरा में लेकिन,
कहीं किसी घर में ,
एक लड़की ऐसी है,
बरसों पहले जैसी दिखती थी ,
अब भी बिल्कुल वैसी है

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परिंदों को मिलेगी मंज़िल, ये फैले हुए उनके पर बोलते हैं
वही लोग खामोश रहते हैं अक्सर, जमाने में जिनके हुनर बोलते हैं

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मैं दुनिया के मेयार पर नहीं उतरा
दुनिया मेरे मेयार पर नहीं उतरी
मैं झूठ के दरबार में सच बोल रहा हूं
हैरत है सर मेरा कलम नहीं होता

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ऊंची इमारतों से घिर गया मेरा मकां
कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए

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आपका हमसफर

दीपक नरेश

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