गुरुवार, 22 मई 2008

किलिंग है तो ऑनर कैसा?



नोएडा के आरुषि हत्याकांड की गुत्थियां सुलझने का नाम नहीं ले रही..पुलिस परेशान..मीडिया परेशान और जनता भी परेशान..हर कोई बस एक ही सवाल का जवाब चाहता है कि आरुषि को किसने मारा..रोज नई नई थ्योरियां आती रहती है..कभी किसी को कातिल बताया जाता है तो कभी शक की सुई घर वालों की ओर घुमाई जाती है.. अब खबर ये आ रही है कि पुलिस तहकीकात जिस ओर जा रही है उससे शायद ये साबित किया जा सके कि ये मामला ऑनर किलिंग का है.. जब पहली बार इस जुमले को सुना था तो शायद ध्यान नहीं दिया था लेकिन आज पूरे दिन ये दो शब्द ज़ेहन पर कब्जा बनाए रहे...क्या इनके व्याकरणिक गठजो़ड़ की तरह इन दो शब्दों का कोई रिश्ता भी हो सकता है पहला सवाल जो दिमाग में आता है कि अगर किलिंग ही हो रही है तो फिर ऑनर कैसा..और अगर ऑनर है तो किलिंग की जरूरत ही क्या.. पहली बार में जरूर अटपटा लगा खुद से ये सवाल पूछना लेकिन बाद में दिमाग किसी बौराए साधू की तरह अफलातूनी गुणा भाग में रम गया....किसी की जान ले लेने का हक किसी को कैसे मिल सकता है.. और अगर कोई ये अपराध करता है तो उसके लिए सम्मान कहां से बचा रहता है.. दुबारा से कोशिश करते हैं इस सवाल को सीधा करने की... अगर सम्मान की खातिर किसी की जान ले ली जाती है तो फिर आप अपराधी हो गए क्योंकि आपने कानून को तोड़ा या कहें कानून हाथ में लिया.. ऐसे में किसी अपराधी को कोई समाज सम्मान की नजर से क्यों देखेगा..जबकि अपराध करने वाले ने समाज में इज्जत बचाने या बनाए रखने के नाम पर ही वारदात को अंजाम दिया है...भई अनपढ़ और जाहिल लोग अगर ऐसा करें तो समझ में आता है लेकिन पढ़े लिखे जाहिल अगर ऐसा करते हैं और वो भी ऑनर किलिंग का सहारा लेकर तो उनके लिए एक ही सजा होनी चाहिए कि उन्हें सरेआम फांसी पर लटका दो.. वैसे जब इस शब्द की तह में जाने की कोशिश शुरु हुई तो तमाम ऐसी भी जानकारियां पल्ले आईं..जो दिल दहला देने वाली हैं। मसलन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ऐसी वारदातों की एक लंबी फेहरिस्त है जिसमें एक ही गोत्र में शादी करने वाले लड़के लड़कियों को ऑनर किलिंग के नाम पर मौत दे दी गई।. बिहार के गांवों और झारखंड के आदिवासी इलाकों में ये आम बात है.. गुजरात के बनासकाठा औऱ राजमहल इलाकों में भी ऑनर किलिंग के मामले सामने आते रहे हैं...हरियाणा औऱ राजस्थान में ऑनर किलिंग की एक भरी-पूरी परंपरा मौजूद है.......क्या ये किसी सभ्य समाज की तस्वीर हो सकती है..या फिर ये सब सुनने के बाद कौन कह सकता है कि हम आधुनिक युग में जी रहे हैं......सबसे शर्मनाक पहलू ये है कि इन वारदातों को अंजाम देने वाली संस्थाएं इतनी ताकतवर और बर्बर हैं कि प्रशासन और देश का कानून भी इनके सामने बेबस और लाचार हो जाता है...देश के हर नागरिक को ये अधिकार है कि वो अपनी पंसद की जिंदगी जी सके और संविधान और कानून में इसके लिए मुकम्मल इंतजाम भी किए गए हैं लेकिन अफसोस की बात ये है कि प्रशासन और कानून का पालन करवाने वाली संस्थाओं को राजनीतिक सिस्टम के नाम पर एक ऐसे दुष्चक्र में फंसा कर रखा गया है कि वो अपना काम करने में लाचार हैं...अपराध, राजनीति..माफिया..भ्रष्टाचार, घूसखोरी, ये सब शब्द मानों प्रशासन और कानून का पर्याय बन चुके हैं। हमारी जिंदगी में ये ऐसा घुस चुके हैं जैसे खटिए में खटमल..और अब ऑनर किलिंग का प्रेत जो गांवों की दहलीज पर लगे पीपल के पेड़ से उतर कर बेताल की तरह हमारे दिमाग में जगह बनाने की जुगत भिड़ा रहा है.... कोई ताज्जुब नहीं कि एक दिन हम ऑनर किलिंग को सुनकर ऐसे ही रियक्ट करें मानो आमिर ने शाहरुख को कुत्ता कह दिया हो या करीना ने अपना प्रेमी बदल लिया हो..

आपका हमसफर
दीपक नरेश


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