गुरुवार, 1 मई 2008

यही सच है

भाई प्रमोद चौहान कवि तो नहीं... लेकिन कवि वाली तल्खी जरूर रखते हैं..इनकी शायद पहली कविता मुझे मिली है मुझे अच्छी लगी...उम्मीद है आप को भी पसंद आएगी...

जब कोई कुकहाते,
लार टपकाते,
सामने से चला आए
तो समझदार को चाहिए कि
वो डर जाए
और इस आंशका से भर जाए
कि कहीं वो उससे
प्रतिस्पर्धा ना कर जाए

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